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स्टार्क आइंस्टीन का नियम,stark einstein law of photochemistry in hindi

इस आर्टिकल में आपको स्टार्क आइंस्टीन के नियम के बारे में सरल भाषा में  बताया गए है

इस नियम के बारे में संपूर्ण जानकारी जानने के लिए आर्टिकल को पूरा पढ़ें

स्टार्क- आइन्सटीन का नियम या प्रकाश-रासायनिक तुल्यता का नियम ---  (STARK-EINSTEIN LAW OR LAW OF PHOTOCHEMICAL EQUIVALENCE) -

परिभाषा -- एक अणु द्वारा अवशोषित विकिरणों का प्रत्येक क्वाण्टम प्रकाश-रासायनिक अभिक्रिया के प्राथमिक पद में एक अणु को सक्रियित करता है।"

सन् 1908 में स्टार्क ने तथा सन् 1912 में आइन्सटीन ने ऊर्जा की क्वाण्टम अवधारणा को अणुओं की प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाओं पर लांगू किया और एक नियम दिया जिसे 'क्वाण्टम सक्रियण' (Quantum activation) अथवा|प्रकाश-रासायनिक तुल्यता का नियम अथवा स्टार्क-आइन्सटीन का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार,

 "एक अणु द्वारा अवशोषित विकिरणों का प्रत्येक क्वाण्टम प्रकाश-रासायनिक अभिक्रिया के प्राथमिक पद में एक अणु को सक्रियित करता है।"

 प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाएं कई पदों में सम्पन्न होती हैं अतः इनमें इस बात का भेद करना अत्यन्त आवश्यक है कि अभिक्रिया का प्रकाश अवशोषण वाला प्राथमिक पद कौन-सा है और आगे के अन्य पद कौन-से हैं। यह कतई आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक सक्रियित अणु रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले ही ले, दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि एक सक्रियित अणु अभिक्रियाओं की एक श्रृंखला से गुजरता हुआ कई अन्य अणुओं से अभिक्रिया सम्पन्न करवा ले। अतः यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि प्रत्येक अवशोषित क्वाण्टा से एक अणु अभिक्रिया में भाग लेगा।


ऊर्जा के एक क्वाण्टम या एक फोटॉन का अर्थ है, hv ऊर्जा, जहां h प्लांक स्थिरांक है और v विकिरणों की आवृत्ति है। क्रियाकारक का एक अणु एक फोटॉन के अवशोषण से उत्तेजित होता है । 

                        


अतः उच्च ऊर्जा वाले दृश्य एवं पराबैंगनी विकिरण प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए प्रभावी विकिरण होते हैं जबकि उच्च तरंगदैर्घ्य (कम ऊर्जा) वाले अवरक्त लाल (infrared) विकिरण रासायनिक दृष्टि से सक्रिय नहीं होते।


इस नियम की वैधता निम्न कारणों से है :


(1) एक फोटॉन से उत्तेजित हुए अणु की उत्तेजित अवस्था की आयु इतनी कम होती है कि उसे दूसरा फोटॉन अवशोषित करने का मौका या अवसर ही नहीं मिल पाता। अतः एक अणु केवल एक ही फोटॉन का अवशोषण कर पाता है।


(2) इन प्रक्रमों में प्रयुक्त प्रकाश की तीव्रता इतनी कम होती है कि दूसरे फोटॉन को अवशोषित करने की सम्भावना ही नहीं रहती। हां, यदि उच्च ऊर्जा वाली LASER किरणों का उपयोग किया जाए तो बहुफोटोनिक प्रक्रमों की सम्भावना बन जाती है।

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