हिपेटाइटिस या यकृतशोथ (Hepatitis) -
यकृत्शोथ या हिपेटाइटिस विषाणु जनित संक्रामक रोग है। यह रोग मुख्यतः बच्चों व वयस्कों को अपना शिकार बनाता है। यद्यपि हिपेटाइटिस रोग छ: भिन्न-भिन्न प्रकार के विषाणुओं द्वारा फैलता है। किन्तु उनमें से दो प्रकार के विषाणुओं द्वारा उत्पन्न रोग प्रमुख एवं महत्वपूर्ण है
1, यकृत्शोथ "ए" (Hepatitis-A) -
इसे सामान्यतः पीलिया (Jaundice) कहते हैं जिसमें यकृत क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस रोग का कारण यकृत्शोथ 'ए' विषाणु (Hepatitis - A virus, HAV) होता है। इसका संक्रमण दूषित भोजन व जल के द्वारा होता है। रोगजनक विषाणु मनुष्य में रोग के समय तथा रोग ठीक होने के बाद भी मिलते हैं तथा मल-मूत्र के साथ बाहर निकलते हैं। अत: यह रोग एक महामारी के रूप में फैल सकता है। बच्चे एवं वयस्क दोनों ही इससे रोगग्रस्त होते हैं। किन्तु वयस्कों में यह अधिक गम्भीर होता है।
2. यकृत्शोथ "बी" (Hepatitis-B)
इसे सीरम यकृत्शोथ (Serum hepatitis) भी कहते हैं जो कि यकृतशोथ 'बी' विषाणु (Hepatitis-B-Virus, HBV) के संक्रमण से उत्पन्न होता है। यह विषाणु एच.आई.वी. से भी ज्यादा खतरनाक एक डी.एन.ए. विषाणु है। हिपेटाइटिस बी वायरस की खोज 1965 में एक ऑस्ट्रेलियन आदिवासी के रक्त में डॉक्टर ब्लुमबर्ग (Dr. Blumbarg) द्वारा की गई। इसीलिए इसे ऑस्ट्रेलयन प्रतिजन (Australia antigen) भी कहते हैं। इस खोज के लिए डॉ. ब्लुमबर्ग को 1977 में
नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। इसका संचरण रक्त सम्पर्क से होता है। यह सामान्यतः वयस्कों (Adults) में ही होता है। यकृतशोथ वी में
विषाणु निम्नलिखित माध्यमों द्वारा फैलता है
(i) संक्रमित रक्त आधान द्वारा। (ii) संक्रमित औजारों एवं सूई के प्रयोग द्वारा।
(iii) संक्रमित गर्भवती महिलाओं से नवजात शिशु में
(iv) संक्रमित साथी से यौन सम्पर्क द्वारा।
(v) एक ब्लेड से कई लोगों द्वारा दाढ़ी बनाने या एक ही सूई से
नाक-कान छिदवाने से।
यकृतशोथ-बी के लक्षण (Symptoms of HepatitisB) :-
इस रोग से ग्रसित व्यक्ति में ज्वर, पीलिया, वमन, मूत्र का रंग गहरा पीला होना, भूख न लगना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। यदि रोग लम्बी अवधि तक अनुपचारित रहे तो यकृत कैंसर एवं यकृत में अन्तरालीय सूजन होने की काफी अधिक सम्भावना होती है।
उपरोक्त प्रकार का यकृत्शोथ के अलावा यकृत्शोथ-सी, डी, ई और जी के विषाणुओं द्वारा भी यकृत्शोथ रोग उत्पन्न होते हैं।
निदान (Diagnosis) -
यकृत्शोथ विषाणु शरीर में प्रतिरक्षी अनुक्रिया के फलस्वरूप विशिष्ट प्रतिरक्षी या प्रतिपिण्ड के उत्पादन को उद्दीप्त करता है। ये प्रतिरक्षी IgM प्रकार की होती है। अत: दैहिक द्रव्यों (प्रमुखत: सीरम) में विशेष विषाणु से सम्बन्धित विशिष्ट प्रतिरक्षियों की उपस्थिति द्वारा विषाणु के प्रकार की पहचान की जाती है।
रोग से बचाव एवं उपचार (Preventive Measuresand Cure) -
(i) स्वच्छ जल का प्रयोग करना चाहिए।
(ii) मल-मूत्र विसर्जन के लिए उचित स्वास्थ्यकर सुविधाओं का उपयोग करना चाहिए।
(iii) सदैव डिस्पोजेबल सिरिंज एवं सूई का प्रयोग करना
चाहिए।
(iv) ऑपरेशन के औजार पूर्णत: निर्जर्मीकृत होने चाहिए।
(v) संक्रमित रक्ताधान से बचना चाहिए।
(vi) सुरक्षित यौन सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।
(vii) यकृत्शोथ उत्पन्न करने वाले विषाणुओं से बचाव हेतु 2 टीके लगवाने चाहिए। वर्तमान में यकृत्शोथ ए एवं बी विषाणुओं से बचाव हेतु टीके उपलब्ध है।
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