प्रकाश रसायन का प्रथम नियम ग्रॉथस-ड्रेपर | नियम(FIRSTLAW OF PHOTOCHEMISTRY GROTHUS-DRAPPER LAW) -
इस नियम के अनुसार, “जब किसी पदार्थ के साथ प्रकाश विकिरण टकराते हैं तो आपतित किरणों का कुछ भाग ही अवशोषित होता है जो पदार्थ के रासायनिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होता है। प्रकाश विकिरणों का शेष भाग जो पारगत हो जाता है। या परावर्तित हो जाता है। उसको प्रकाश-रासायनिक अभिक्रिया में कोई • योगदान नहीं होता।
यद्यपि प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाएं प्रकाश विकिरणों के अवशोषण से ही सम्पन्न हो सकती हैं, लेकिन यह कतई आवश्यक नहीं है कि समस्त अवशोषित प्रकाश विकिरण रासायनिक दृष्टि से प्रभावी हों। यदि अणुओं के लिए अभिक्रिया करने की परिस्थितियां अनुकूल न हों तो उस अवशोषित प्रकाश विकिरणों का कुछ या सम्पूर्ण भाग या तो ऊष्मा में परिवर्तित हो जाता है अथवा कुछ स्थितियों में अवशोषित प्रकाश विकिरण उसी अथवा बदली हुई आवृत्ति के विकिरणों के रूप में पुनः उत्सर्जित हो जाता है।
अवशोषित प्रकाश विकिरणों से कोई रासायनिक परिवर्तन होगा या नहीं इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि कितने परिमाण में प्रकाश विकिरणों का अवशोषण हुआ है। माना पदार्थ में प्रवेश करने वाले आपतित विकिरणों की तीव्रता Io है। इसमें से अवशोषित विकिरणों की तीव्रता माना Ia है और पारंगत (transmitted) विकिरणों की तीव्रता Itहै।
सीमाएं (Limitations) -
(1) यह नियम केवल गुणात्मक है, न तो इससे इस बात की जानकारी मिल सकती है कि तन्त्र द्वारा कितने विकिरणों का अवशोषण हुआ और न ही यह जान सकते हैं कि अवशोषित विकिरणों से कितने अणुओं का उत्तेजन हुआ।
(2) सामान्यतया यह मानते हैं कि यह नियम केवल प्राथमिक प्रकाश-रासायनिक प्रक्रमों पर लागू होता है, लेकिन द्वितीयक प्रक्रमों पर यह आंशिक रूप से अथवा पूर्णतः असफल रहता है।
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