Header ads

मानव में निषेचन , निषेचन किसे कहते हैं ?वह निषेचन के प्रकार । इन हिंदी

 मानव में निषेचन  निषेचन किसे कहते हैं ?वह निषेचन के प्रकार इन हिंदी

इस आर्टिकल में आपको मानव में निषेचन निषेचन (fertilization )किसे कहते हैं विशेषण कितने प्रकार का होता हैआपको निषेचन के बारे में संपूर्ण जानकारी बताई गई है

इसलिए आर्टिकल को पूरा पढ़ें क्योंकि आपको आर्टिकल में निषेचन के बारे में सरल भाषा में संपूर्ण जानकारी बताई गई है

अगुणित नर (शुक्राणु) व मादा (अण्डाणु) युग्मकों के संयोग व दोनों युग्मकों के प्राक्केन्द्रकों (Pronuclei) के संलयन को निषेचन कहते हैं। निषेचन के परिणामस्वरूप द्विगुणित युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है।


युग्मकों के प्राक्केन्द्रकों का संलयन युम्मक संलयन (Karyogamy) कहलाता है, जबकि दो युग्मकों के दो गुणसूत्र समुच्चय का मिश्रण, उभयमिश्रण (Amphimixis) कहलाता है। मानव मादा में निषेचन अन्य स्तनियों के समान आन्तरिक होता है। यह सामान्यत: फैलोपियन ट्यूब के एम्पुला (ampulla) में पाया जाता है।


निषेचन के प्रकार(Types of Fertilization) -


निषचन की क्रिया दो प्रकार का होती हैं।


1. बाह्य निषेचन (External Fertilization)


बाह्य निषेचन में नर व मादा युग्मक शरीर के बाहर संलयित होते हैं। यह निषेचन क्रिया जलीय माध्यम सम्पन्न होती है। यह अधिकांशतः मछलियों (लेबियो), उभयचरों (मेढंक) तथा सभी इकाइनोडर्म (सितारा मछली) में पाया होता है।


2. अतः निषेचन (Internal Fertilization) -


अंतः निषेचन में युग्मकों का संलयन मादा जनन नाल के कुछ भागों में तथा सामान्यत: ऑस्टियम के पास होता है। यह अण्डप्रजनक (oviparous) (सभी पक्षी, प्रोटोथीरियन), अण्डाशीशु प्रजनक तथा शिशुप्रजनक (viviparous) (सभी मार्सुपियेल्स तथा राशीरियन) जीवों में पाया जाता है।


कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial insemination) -

अन्त: निषेचन हेतु नर द्वारा मादा के शरीर में शुक्राणुओं को मुक्त करने की क्रिया वीर्य सेचन (Insemination) कहलाती है। जब कृत्रिम रुप से शुक्राणु प्राप्त कर, परिरक्षित (preserved) एवं संचयित कर लिये जाते है एवं आवश्यकतानुसार मादा के गर्भाशय में मुक्त कर निषेचन करवाया जाता है, इस क्रिया को कृत्रिम वीर्य सेचन कहते हैं। यह क्रिया पशुओं में नस्ल सुधार हेतु प्रयोग में ली जाती हैं।


निषेचन के पद (Steps of fertilization) -

1. शुक्राणु का अण्डाणु तक पहुँचना (Approach of Sperm to Ovum) :-"


नर मैथुन के दौरान मादा की योनि में गर्भाशयी नाल के पास वीर्य (3-5ml) स्खलन होता है, इसे वीर्यसेचन कहते है। इस स्खलन में लगभग 400 मिलयिन शुक्राणु पाये जाते हैं परंतु इनमें से 100 शुक्राणु ही फैलोपियन नलिका तक पहुँच पाते है, क्योंकि बहुत से शुक्राणु मादा जनन नाल की अम्लीयता के कारण मर जाते हैं। कई शुक्राणु योनि एपीथीलियम की भक्षी कोशिकाओं द्वारा निगल लिये जाते हैं । शुक्राणु, शुक्रद्रव (Seminal fluid) में 1-4mm, प्रति मिनिट की दर से तैरते रहते हैं। शुक्राणुओं की यह गति गर्भाशयी संकुचन क्रिया तथा फैलोपियन ट्यूब की क्रमाकुंचनी (peristaltic) गति द्वारा होती है। शुक्राणु मादा गर्भाशय में प्रवेश के कुछ समय बाद निषेचन करने में

सक्षम होते हैं। अपनी ही जाति के अण्ड (ovum) को निषेचित करने की शु क्षमता को शुक्राणु का योग्यतार्जन (capacitation) कहते हैं


इस प्रक्रिया में शुक्राणु का कार्यकीय परिपक्वन होता है, जिसमें शुक्राणु लयनकारी एन्जाइम की क्रिया के फलस्वरूप अण्डावरण को भेदकर अण्ड में प्रवेश कर जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग 5-6 घण्टे लगते है। तत्पश्चात् शुक्राणु, अण्ड (ovum) का निषेचन करता है।

                           


2. शुक्राणु का प्रवेश (Entry of Sperm) -

अण्डाणु एक रासायनिक पदार्थ स्त्रावित करता है जिसे फर्टिलाइजिन (Fertilizin) कहते हैं। इसकी सतह पर शुक्राणु स्नेही स्थल होते हैं, जहाँ पर विशिष्ट शुक्राणु अपने एण्टीफर्टिलाइजिन (Antifertilizin) स्थल द्वारा जुड़ जाते हैं। इसी फर्टीलाइजिन • एण्टीफर्टीलाइजिन अन्तःक्रिया के द्वारा चिपक जाते हैं। अण्डे तथा शुक्राणु एक दूसरे से चिपक जाते है ।


शुक्राणु द्वारा भेदन एक रासायनिक क्रियाविधि है। इसमें शुक्राणु का अग्रपिण्डक (Acrosome) क्रिया में भाग लेता है तथा कुछ शुक्राणुलयन (Sperm lysins) मुक्त करता है, जो अण्डे के आवरण को घोलकर शुक्राणु के प्रवेश के लिए मार्ग बनाते है। शुक्राणुलयन अम्लीय प्रोटीन होते हैं। इसमें एक लयनकारी एन्जाइम हायलयूरोनीडेज् पाया जाता है जो अन्तरकोशिकीय अवकाशों में हायलयूरानिक अम्ल बहुलक को घोल देता है। यह अम्ल कोरोना रेडिएटा (Coronaradiata) की ग्रेन्युलोसा कोशिकाओं को साथ-साथ रखता है। कोरोना भेदन एन्जाइम कोरोना रेडिएटा को घोलते है तथा एक्रोसिन (Acrosin) जोना पेल्यूसिडा को घोलते हैं।

                       


3. वल्कुटी अभिक्रिया (Cortical reaction) :

 शुक्राणु के अण्डे में प्रवेश करने के तुरंत बाद ही, अण्डे में अन्य शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकने के लिए वल्कुटी अभिक्रिया होती है। इस अभिक्रिया में अण्डे की प्लाज्मा झिल्ली के नीचे स्थित वल्कुटी कणों द्वारा अण्डकोषाद्रव्य तथा प्लाज्मा झिल्ली (विटेलाइन झिल्ली) के बीच रासायनिक पदार्थ होते हैं। शुक्राणु के अण्डाणु में प्रवेश के बाद निम्नलिखित उपापचयी क्रियायें उत्प्रेरित होती हैं


1. अण्डे की सतह पर निषेचन शंकु (Fertilixation cone) का निर्माण होता है।


2.विटेलाइन झिल्ली बढ़कर निषेचन कला (Fertilization membrane) में परिवर्तित हो जाती है।


3. कोशाद्रव्य में गति पाई जाती है। 


4.प्लाज्मा झिल्ली की पारगम्यताबढ़ जाती हैं।


5. प्रोटीन संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।


6. समसूत्री विभाजन प्रारम्भ हो जाता है।




4 .प्राक्केन्द्रक संलयनः (Fusion of Prounclei) -


शुक्राणु का अण्डाणु के प्रवेश एक उद्दीपन की तरह कार्य करता है। इसके परिणामस्वरूप द्वितीयक परिपक्वन विभाजन होता है। अण्डे में प्रवेश के बाद शुक्राणु का सिर तथा मध्य भाग 180° के कोण से घूम जाते है जिसके कारण मध्य भाग से संबंधित माइटोकोण्ड्रिया तथा समीपस्थ तारक केन्द्र सिर के आगे पहुंच जाते हैं। शुक्राणु के द्वारा लाया गया तारक केन्द्र दो भागों में विभाजित हो जाता है और सक्रिय कोशाद्रव्य के केन्द्र में गुणसूत्रीय तर्कु (Chromosomal spindle) का निर्माण करता है। द्वितीयक ध्रुवकाय (Polar body) के निर्माण के साथ ही अण्ड केन्द्रक (Egg nucleus) या मादा प्राक्केन्द्रक शुक्राणु सिर के नर प्राक्केन्द्रक के साथ संयाजन के लिए तैयार हो जाता है।

नर प्राक्केन्द्रक शुक्राणु भेदन पथ (penetration path) का अनुसरण करने के बाद मादा प्राक्केन्द्रक की ओर सीधे गति करता कई परिस्थितियों में शुक्राणु के इस मार्ग में बहुत कम परिवर्तन होते हैं। इस की परिस्थिति में शुक्राणु के मार्ग का भाग मैथुन पथ (Copulation path) कहलाता है।

निषेचन का महत्त्व (Significance of Fertilization) -


1 .यह अण्डे को पूर्ण परिपक्वन के लिए उद्दीपित करता है।

2 . यह अण्डाणु को निरन्तर समसूत्री विभाजन के द्वारा नये जीव में विकसित होने के लिए सक्रिय करता है।

3 . यह नर गुणसूत्र के अगुणित समुच्चय के संयोजन द्वारा युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या को द्विगुणित (मनुष्य में 46) करता है। 

4.यह अण्डे को उपापचयी रुप से अधिक सक्रिय बनाता है।

5 . यह दो जनकों के लक्षणों को संयुक्त करता है और विभिन्नतायें उत्पन्न करता है। इस प्रकार यह उद्विकास में भी सहायक होता है।


6 .शुक्राणु के लिंग गुणसूत्र X अथवा Y होते है जिसके कारण यह लिंग निर्धारण में भी सहायता करता है। 

7 .शुक्राणु के प्रवेश के बाद निषेचन कला का निर्माण होता है जिससे बहु शुक्राणुता को रोका जाता है।


8 .मैथुनी-पथ (Copulation path) विभाजन के अक्ष का  निर्धारण करता है

आर्टिकल में आपको मानव मे निषेचन ,निषेचन किसे कहते हैं निषेचन के प्रकार के बारे में संपूर्ण जानकारी बता दी गई है

कृपया आर्टिकल को अपने दोस्तों को शेयर करें



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Close Menu