पादप उत्तक किसे कहते हैं सरल उत्तक के प्रकार tissue types of simple tissue in Hindi
आपको इस आर्टिकल में उत्तक किसे कहते हैं वह सरल उत्तक के प्रकार के बारे में बताया गया हैआप आर्टिकल में जान सकेंगे कि उत्तक किसे कहते हैं और सरल उत्तक के प्रकार आपको सरल भाषा में बताए गए हैं इसलिए आर्टिकल पूरा पढ़ें
नीचे आपको संपूर्ण जानकारी दी गई हैं
ऊत्तक (Tissue) -
एक ही प्रकार की कोशिकाओं का समूह जो मिलकर एक कार्य का संपादन करती है, ऊत्तक कहलाता है।
सामान्य तौर पर एक समान अथवा अधिक प्रकार की कोशिकाओं का समूह, जिनकी उत्पत्ति समान हो तथा वे मिलकर एक विशिष्ट कार्य को संपादित करते हों, ऊत्तक कहलाता है।
सरल ऊत्तक (Simple tissue)—
समान उत्पत्ति, आकार एवं कार्य करने वाली एक ही प्रकार की कोशिकाओं के समूह को सरल ऊत्तक कहते हैं। ये समांगी होते हैं।
सरल ऊत्तक पुनः तीन प्रकार के होते हैं
___(1) मृदूत्तक (2) स्थूलकोणोत्तक (3) दृढ़ोत्तक ।
( 1 ) मृदूत्तक (Parenchyma) —
(i) मृदूत्तक की कोशिकाएँ सेलुलोस युक्त, पतली भित्ति वाली, समव्यासी व जीवित होती हैं।
(ii) ये कोशिकाएँ मूलरूप से अण्डाकार, गोलाकार या बहुभुजाकार होती हैं।
(iii) पादप का अधिकांश भाग इन्हीं कोशिकाओं का बना होने से इन्हें भरण ऊत्तक (ground tissue) भी कहते हैं।
(iv) जब मृदूत्तक कोशिकाओं में हरितलवक (chloroplast) होते हैं, तब इन्हें हरितऊत्तक (chlorenchyma) कहते हैं तथा इनका मुख्य कार्य प्रकाश संश्लेषण होता है। द्विबीजपत्री पर्ण में हरित ऊत्तक प्रायः स्पंजी मृदूत्तक (Spongy parenchyma) एवं खम्भ मृदूत्तक (palisade paren chyma) में विभेदित होता है, जबकि एक बीजपात्री पर्ण में यह अविभेदित होता है।
(v) इनमें सामान्यत: छोटे-छोटे अन्तराकोशिक अवकाश पाये जाते हैं। (vi) ये पादप के सभी मुलायम भागों में मिलते हैं तथा इनका प्रमुख ) ये कार्य संग्रह होता है।
(vii) मृदूत्तक कोशिकाओं में जब अपेक्षाकृत बहुत बड़े अन्तराकोशिक अवकाश पाये जाते हैं, जिनमें वायु भरी रहती हैं तो इसे वायूत्तक (acrenchyma) कहते हैं। ये जलीय पादपों जैसे आईकोरनिया (Eichhornia), हाइड्रिला (Hydrilla), कैना (Canna) आदि में पाये जाते हैं। यह पादप अंग नहीं में वातन के साथ-साथ अंग को प्लवमान (buoyant) भी बनाते हैं। (viii) मृदूत्तक सबसे आधारी (basic) प्रकार का ऊत्तक होता है तथा इसी से अन्य सभी प्रकार के ऊत्तकों की उत्पत्ति (origin) व परिवर्द्धन (development) होता है
मृदूत्तक पैरेन्काइमा के कार्य (Function of Parenchyma)/ - (i) सक्रिय प्रोटोप्लास्ट के कारण यह सभी आवश्यक कायिक कार्यों का स्थल होता है जैसे- प्रकाश-संश्लेषण, श्वसन, खाद्य पदार्थों का संचय, स्त्रवण और उत्सर्जन आदि।
(ii) जाइलम और फ्लोएम को पैरेन्काइमी कोशिकाएँ जल और भोजन घोल के रूप में चालन करती हैं।
(iii) अधिचर्म की पैरेन्काइमी काशिकाएँ अपनी क्यूटिकल के साथ पौधे को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
(iv) द्वितीयक मेरिस्टेम पैरेन्काइमी ऊत्तक में उत्पन्न होते हैं। (v) मरुद्भिद पौधों में पैरेन्काइमा जल संचयन का कार्य करता है। - इनके भीतर का म्यूसिलेज जल धारण शक्ति बढ़ा देता है।
(2) स्थूलकोणोत्तक (Collenchyma)/
(i) स्थूलकोणोत्तक की कोशिकाएँ कुछ लम्बी व तिरछी अन्त:भित्ति (end walls) वाली होती हैं। अनुप्रस्थ में ये गोलाकार, अण्डाकार या बहुभुजाकार दिखाई देती हैं।
(ii) इन कोशिकाओं में अन्तराकोशिक अवकाश के सामने वाले कोणों पर कोशिका भित्ति अधिक मोटी व मध्य भाग में अपेक्षाकृत पतली होती है। यह मोटाई भित्ति पर सेलुलोस, हेमीसेलुलोस व पेक्टिन (pection) के निक्षेपण (deposition) के कारण होती है।
(iii) यह ऊत्तक प्रायः शाकीय (herbaceous) द्विबीजपत्री पौधों के स्तम्भ में अधिचर्म के नीचे तीन या चार परतों में पाया जाता है।
मूलभूत शरार
(iv) प्राय: ये ऊत्तक भूमिगत भागों (मूल) व एकबीजपत्री पादपों में नहीं पाये जाते हैं। (v) यह ऊत्तक पादप के कोमल तरुण अंगों को दृढ़ता प्रदान करते हैं तथा हरितलवक उपस्थित होने पर ये खाद्य का निर्माण भी करते हैं।
स्थूलकोणोत्तक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
(a) कोणीय स्थूलकोणत्तक (Angular collenchyma) - इनमें कोशिकाएँ अनियमित रूप से विन्यासित होती हैं और निक्षेपण केवल कोशिकाओं के कोणों तक ही सीमित होता है। उदाहरण-कुकुरबिटा (Cucurbita)।
(b) नलिकाकार स्थूलकोणोत्तक (Tubular collenchyma)– इनमें स्पष्ट अन्तराकोशिक अवकाश होते हैं और निक्षेपण भित्तियों के उन स्थानों तक सीमित रहता है जो इन अन्तराकोशिक अवकाशों को घेरे हुए होते हैं। उदाहरण- टमाटर, धतूरा, तम्बाकू आदि ।
(c) स्तरित स्थूलकोणोत्तक (Lamellar collenchyma) - इनमें कोशिकाएँ एक के बाद एक अनेक परतों में विन्यासित होती हैं और इनमें निक्षेपण मुख्य रूप से कोशिकाओं की स्पर्शरेखीय भित्तियों (tangential walls) पर ही होती हैं। उदाहरण सूरजमुखी के तने में उपस्थित अधश्चर्म।
स्थूलकोणोत्तक या कॉलेन्काइमा के कार्य (Function of Collen chyma)-
(i) वृद्धिशील अंगों में यह प्रभावी यांत्रिक ऊत्तक (Mechanical Tissue) है जहाँ यह सामर्थ्य और प्रत्यास्थता (Tensile Strength) प्रदान करता है। कॉलेन्काइमी काशिकाओं में सतह और मोटाई में बढ़ने की अत्यधिक क्षमता होती है।
(ii) पौधे के पुराने भागों में यह दृढ़ोत्तक में परिवर्तित हो जाता है, क्योंकि इसकी भित्तियों पर लिग्निन (Lignin) का निक्षेपण पाया जाता है। (iii) हरित लवकों की उपस्थिति के कारण कुछ प्रकाश-संश्लेषण भी होता है।
(iv) पत्तियों के किनारों पर इसकी उपस्थिति इन्हें आधार बल देती है। (v) पौधों के जिन हिस्सों पर तेज हवाओं का असर होता है वहाँ कॉलेन्काइमा (स्थूलकोणोत्तक) वृद्धि कर जाता है।
(vi) वृद्धिशील अंगों को तनन सामर्थ्य प्रदान करता है, जब कि उसमें दृढ़ोत्तक विभेदित नहीं हो जाता। इससे अंगों की लम्बाई की वृद्धि में कोई बाधा नहीं पहुँचती।
(vii) शाकीय तनों में कॉलेन्काइमा स्थायी रूप से विद्यमान रहता है। क्योंकि इन तनों में द्वितीयक वृद्धि बहुत कम होती है।
(3) दृढ़ोत्तक (Sclerenchyna)
(i) इनकी कोशिकाएँ प्राय: बहुत लम्बी, संकरी तथा नुकीले सिरों वाली होती हैं।
(ii) इनकी कोशिका भित्ति लिग्निन (Lignin) का निक्षेपण होने से समान मोटाई वाली होती है। कोशिका भित्ति प्रायः इतनी अधिक मोटी हो जाती है कि कोशिका गुहा लगभग बन्द हो जाती है।
(iii) ये कोशिकाएँ लम्बी व धागे के समान होने के कारण तन्तु या रेशे (fibres) या दृढ़ोत्तक तन्तु (Selerenchymatous fibres) भी कहलाती हैं। आवृत्तबीजी पादपों (angiosperms) में इनकी औसत लम्बाई 1 से 3 मिमी. तथा अनावृत्तबीजी पादपों (gymnosperms) में 2 से 8 मिमी. होती है। प्रमुख कार्य पादप को
(iv) इनकी कोशिकाएँ मृत होती हैं और इनका बलकृत शक्ति एवं दृढ़ता प्रदान करना होता है।
(v) कभी-कभी दृढ़ोत्तक कोशिकाएँ चौड़ाई की तुलना में अधिक • लम्बी न होकर लगभग समान व्यास की होती हैं। इनकी भित्ति इतनी अधिक मोटी हो जाती है कि कोशिका गुहा लगभग बन्द हो जाती है, इन्हें दृढ़ कोशिकाएँ कहते हैं।
दृढ़ोत्तक के प्रकार(Types of Sclerenchyma) -
यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है
(a) दृढ़ोत्तक तन्तु,
(b) स्कलेरीड।
(a) दृढ़ोतक तन्तु (Sclerenchymatous fibres)–कोशिकाएँ लम्बी संकरी और दोनों सिरों पर से नुकीली, कोशिका भित्ति लिग्निन युक्त अधिक लिग्निन के जमाव हो जाने से कोशा गुहा (lumen) नाममात्र रह जाती है। कोशिका भित्ति में सरल तथा तिरछी गर्त अथवा परिवेशित गर्त (borderedpits) उपस्थित होते हैं।
आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तन्तु निम्नांकित हैं पत्तियों से प्राप्त तन्तु (Leaf fibres)
केला (Manila hemp)
घीग्वार (Sisal Hemp)
Musa textiles
- Agave sislana
पोषवाह तन्तु (Phloem fibres अथवा Best fibres)
अलसी (Flax)
-Linum usitatissimum
जूट (Jute)
- Corchorus Capsularis
पटसन (Madras Hemp) -
Hibisuss Canabinus
सन (Sun Hemp)
- Crotolaria juncea
(b) स्कलेरीड (Sclerids)— इन कोशिकाओं की भित्ति मोटी होती है । कोशिका समव्यासीय तथा अनियमित आकार की होती है। लिग्निन का जमाव अधिक होता है। लिग्निन के जमाव के अधिक हो जाने से कोशिका के अन्दर की गुहा बहुत संकीर्ण हो जाती है। इसकी उत्पत्ति मृदूत्तक कोशिकाओं से होती है। इनमें शाखित सरल गर्त होते हैं।
दृढ़ोतक के कार्य (Functions of Scherenchyma) -
(i) यांत्रिक सहायता प्रदान करते हैं।
(ii) इस ऊत्तक के कारण ही पौधा वायु, गुरुत्वाकर्षण इत्यादि प्रभावों के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न करता है।
(iii) मरुस्थलीय पौधो मे अधिकता से पाये जाते है
आपको आर्टिकल में उत्तक किसे कहते हैं व सरल उत्तक के प्रकार के बारे में संपूर्ण जानकारी बता दी गई है
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