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हाइड्रोजन बन्ध किसे कहते हैं, हाइड्रोजन बन्ध के प्रकार, हाइड्रोजन बन्ध को प्रभावित करने वाले कारक

 हाइड्रोजन बन्ध किसे कहते हैं, हाइड्रोजन बन्ध के प्रकार, हाइड्रोजन बन्ध को  प्रभावित करने वाले

आपको इस आर्टिकल में हाइड्रोजन बंध किसे कहते हैं हाइड्रोजन बंध के प्रकार और हाइड्रोजन बंध को प्रभावित करने वाले कारको को बहुत ही सरल शब्दो व आसान परिभाषा के द्वारा समझाया गया है इसलिए आर्टिकल को पूरा पढे।


 हाइड्रोजन बन्ध , हाइड्रोजन बन्ध के प्रकार, हाइड्रोजन बन्ध को  प्रभावित करने वाले कारक



आपको इस आर्टिकल में हाइड्रोजन बंध किसे कहते हैं हाइड्रोजन बंध के प्रकार और हाइड्रोजन बंध को प्रभावित करने वाले कारको को बहुत ही सरल शब्दो व आसान परिभाषा के द्वारा समझाया गया है इसलिए आर्टिकल को पूरा पढे।


 हाइड्रोजन बन्ध किसे कहते हैं, हाइड्रोजन बन्ध के प्रकार, हाइड्रोजन बन्ध को  प्रभावित करने वाले कारक



1. हाइड्रोजन बन्धन (HYDROGEN BONDING) - 

किसी अणु के ऋणविद्युती परमाणु के साथ जुड़े हुए हाइड्रोजन परमाणु और उसी अणु अथवा किसी अन्य के प्रबल ऋणविद्युती परमाणु के मध्य का आकर्षण बल हाइड्रोजन बन्ध (Hydrogen bond) कहलाता है। इसे भली-भांति समझने के लिए माना कि हम एक अणु लेते हैं HA जहां A एक प्रबल ऋणविद्युती तत्व है, जैसे N, O अथवा F। इस अणु में एक सहसंयोजक बन्ध है H व A के मध्य H—A चूंकि दोनों के मध्य विद्युत्-ऋणात्मकता (electronegativity) का बहुत अधिक अन्तर है, अतः इस सहसंयोजक बन्ध में ध्रुवता (Polarity) आ जाएगी फलस्वरूप हाइड्रोजन पर आंशिक धन आवेश व A पर आंशिक ऋण आवेश आ जाएगा।

                     


अब यदि इस प्रकार का अणु किसी अन्य H—A अणु अथवा H—B (जहां B एक ऋणविद्युती तत्व हो) अणु के सम्पर्क में आयेगा तो दोनों अणुओं के विपरीत ध्रुवों के मध्य परस्पर एक आकर्षण बल स्थापित हो जाएगा।

                    अथवा 

                         

 इस प्रकार के आकर्षण बल को, जिसे हम बिन्दु रेखा (dotted line) (........ ) द्वारा प्रदर्शित करते हैं, हाइड्रोजन बन्ध कहा जाता है। उपर्युक्त दोनों संरचनाओं को यदि हम थोड़ा ध्यान से देखें तो पाते हैं कि इनमें दो प्रबल ऋणविद्युती तत्वों के मध्य एक हाइड्रोजन परमाणु एक प्रकार से सेतु की भांति जुड़ा हुआ है, इसी से इसका नाम हाइड्रोजन सेतु (Hydrogen bridge) अथवा हाइड्रोजन बन्ध पड़ा। अतः हम हाइड्रोजन बन्ध को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं—“जब दो ऋणविद्युती परमाणु परस्पर हाइड्रोजन परमाणु द्वारा जुड़े हुए हों तो वह बन्ध हाइड्रोजन बन्ध कहलाता है।" यहां एक बात स्मरणीय रहे कि एक ऋणविद्युती परमाणु से हाइड्रोजन सहसंयोजक बन्ध द्वारा जुड़ा हुआ है जबकि दूसरे ऋणविद्युती परमाणु से हाइड्रोजन बन्ध द्वारा। वस्तुतः हाइड्रोजन बन्ध कोई रासायनिक बन्ध नहीं है, वास्तव में यह दो परमाणुओं का एक आकर्षण बल है, अतः इसकी प्रकृति बहुत प्रबल नहीं होती। किन्तु यह बन्ध दुर्बल होते हुए भी यौगिकों के कई भौतिक गुणों को प्रभावित करता है।


H-बन्ध के प्रकार (TYPES OF H-BONDING)


H-बन्ध मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं—अन्तराणुक हाइड्रोजन बन्ध (Intermolecular hydrogen bond) तथा अन्तःअणुक हाइड्रोजन बन्ध (Intramolecular hydrogen bond) | इन दोनों प्रकारों के हाइड्रोजन बन्धों का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है


(I) अन्तराणुक हाइड्रोजन बन्ध(Intermolecular Hydrogen  Bonding)-

जब हाइड्रोजन बन्ध दो भिन्न-भिन्न अणुओं के ऋणविद्युती परमाणुओं के मध्य होता है तो उसे अन्तराणुक H-बन्ध कहते हैं। चूंकि आकर्षण दो अलग-अलग अणुओं के मध्य होता है अतः समस्त अणु एक-दूसरे के समीप आ जाते हैं। दूसरे शब्दों में, अन्तराणुक हाइड्रोजन बन्ध से सदैव अणुओं का संगुणन (association) हो जाता है। उदाहरण, HF, H2O, NH3, ROH, आदि में अणु निम्न प्रकार संगुणित हो जाते हैं 



अन्तराणुक H-वन्ध  के फलस्वरूप अणुओं में संगुणन होता है व संगुणन के कारण उनके कुछ गुण प्रभावित होते हैं। अब हम कुछ यौगिकों के उन गुणों का अध्ययन करेंगे जो अन्तराणुक H-बन्ध के कारण प्रभावित होते हैं।


कुछ यौगिकों के गुण जो अन्तराणुक H-बन्ध द्वारा समझाये जा सकते हो (Properties of Few Compounds Explained by Intermolecular Hydrogen Bonding) -


(1) H2O व H2S की भौतिक अवस्था (Physical state of H2O and H2S) - सामान्य ताप पर H2O एक द्रव है जबकि H2S एक गैस, इसका कारण है अन्तराणुक H-बन्ध। हम जानते हैं कि ऑक्सीजन की विद्युत् ऋणात्मकता सल्फर से अधिक है (xo > xs) अतः HO में प्रबल अन्तराणुक H-बन्ध होगा। फलम्वरूप H20 के अणुओं का संगुणन ( association) हो जाएगा। इस कारण H2O के अणु एक-दूसरे के नजदीक आ जाएंगे और एक प्रकार से बहुलकीकृत होकर झुण्ड 'क्लस्चर' (clusture) के रूप में रहेंगे—(H2O)n, अतः सामान्य परिस्थितियों में जल द्रव के रूप में होता है। दूसरी ओर H2S में H-बन्ध के अभाव के कारण अणु एक-दूसरे से दूर-दूर ही रहते हैं इसलिए  सामान्य परिस्थितियों में H2S एक गैस है। कल्पना करें कि यदि जल ही जीवन है" वाला जल ही नहीं होता, तब हमारी जिन्दगी कैसी विचित्र होती। शायद हम जीवित ही नहीं होते, क्योंकि किसी ग्रह या उपग्रह में जीवन होने की सम्भावना ही जल की खोज के बाद होती है


(2) बर्फ का घनत्व पानी से कम होता है (The density of ice is lesser than water) बर्फ के क्रिस्टल बनते समय अणुओं में परस्पर H-बन्ध इस प्रकार से व्यवस्थित हो जाते हैं कि प्रत्येक ऑक्सीजन परमाणु चार हाइड्रोजन परमाणुओं से घिर जाता है—दो से सहसंयोजक बन्ध द्वारा तो जुड़ा हुआ रहता हो है शेष दो से H-बन्ध द्वारा जुड़ जाता है। इस प्रकार H2O का प्रत्येक अणु चतुष्फलकीय रूप में H2O के चार अन्य अणुओं द्वारा घिर जाता है, फलस्वरूप एक 'खुला पिंजरा' (Open cage) जैसी सरचना बन जाती है, चूंकि इस संरचना में बहुत अधिक खुला स्थान  रिक्त रह जाता है अतः बर्फ का घनत्व जल की तुलना में कम हो जाता है।



(3) 0°C का जल 4°C तक गरम करने पर सिकुड़ता है (There is a contraction in water when it is warmed from 0°C upto 4°C)–0°C के जल में H-बन्ध के कारण दो अणुओं के मध्य एक निश्चित दूरी स्थापित रहती है, जब इसे गरम किया जाता है तो H-बन्ध के टूट जाने के कारण जल के अणु परस्पर एक-दूसरे के पास आ जाते हैं और जल का आयतन सिकुड़ जाता है। 4°C से और अधिक गरम करने पर जल के अणुओं की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) बढ़ जाने के कारण अणु एक दूसरे से दूर होने लगते हैं और उनका आयतन प्रसार (expansion) के कारण बढ़ने लगता है। अतः 4°C पर जल का आयतन सबसे कम व घनत्व अधिकतम होता है।


(4) हाइड्रोजन हैलाइडों की अम्ल सामर्थ्य (Acid strength of acid halides)– हाइड्रोजन हैलाइड सहसंयोजक यौगिक होते हुए भी प्रोटॉन मुक्त करते हैं और प्रबल अम्लों की भांति व्यवहार करते हैं। इसका कारण यह है कि हाइड्रोजन की तुलना में हैलोजेन की विद्युत् ऋणात्मकता का मान अत्यन्त उच्च होता है जिससे H-X बन्ध में अत्यधिक ध्रुवता  आ जाती है जिससे हाइड्रोजन परमाणु प्रोटॉन (H+) के रूप में मुक्त हो जाता है। हैलोजेनों की विद्युत् ऋणात्मकता फ्लुओरीन से आयोडीन तक घटती जाती है, अतः HF से HI तक अम्ल सामर्थ्य का मान घटता जाना चाहिए। लेकिन इसी क्रम में हाइड्रोजन बन्ध की प्रबलता घटती जाती है, अतः इनकी अम्ल सामर्थ्य निम्न क्रम में बढ़ती जाती है .



(II) अन्तःअणुक हाइड्रोजन बन्ध (Intramo lecular Hydrogen Bonding)

जब H-बन्ध उसी एक अणु के दो ऋणविद्युती परमाणुओं के मध्य पाया जाता है तो ऐसे हाइड्रोजन बन्ध को हम अन्तःअणुक (in tramolecular) H-बन्ध कहते हैं। अन्तःअणुक H-बन्ध के फलस्वरूप किसी अणु में एक चक्रीय संरचना बन जाती है। अतः इसे कीलेट बन्ध अथवा कीलेकरण (chelation) भी कहते हैं। अन्तःअणुक H-बन्ध उसी स्थिति में अधिक प्रभावी होता है जब कोई स्थायी चक्रीय संरचना बनने की सम्भावना हो। उदाहरणार्थ, संलग्न यौगिकों में स्थायी पांच अथवा छः सदस्यीय चक्रीय संरचनाएं बन रही हैं। 



अन्तः अणुक H-बन्ध व यौगिकों के गुण (Intramolecular H-Bond and Properties of the Compounds ) -  

  (1) क्वथनांक B.P. व गलनांक M.P. -अन्तःअणुक H-बन्ध के फलस्वरूप उस अणु का दूसर अणुओं के प्रति आकर्षण कम हो जाता है अतः इन यौगिकों के क्वथनांक व गलनांक कम हो जाते है। उदाहरण के लिए,


(i) क्लोरोफीनॉलों के क्वथनांक निम्न क्रम में बढ़ते है -



(ii) o -नाइट्रोफीनॉल का गलनांक 45°C होता है जबकि इसके मेटा- (meta-) व पैरा- (para-) समावयवियों के गलनांक क्रमशः 97°C व 114°C होते हैं। ०-यौगिक में अन्तःअणुक H-बन्ध होते हैं जबकि m- व p-समावयवियों में अन्तराणुक H-बन्ध की सम्भावना बनती है अतः इनके गलनांक बढ़ जाते हैं।

(iii) इसी प्रकार नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल के ऑर्थो व्युत्पन्न का गलनांक 147°C है जबकि इसके का गलनांक अन्तराण्विक हाइड्रोजन बन्ध के कारण उच्च 242°C होता हैं।



H-बन्ध को प्रभावित करने वाले कारक (Factor Effecting Hydrogen Bonding ) -

H-बन्ध, सहसंयोजक बन्ध की तुलना में तो अत्यन्त दुर्बल होता है, साथ ही यह बन्ध महज आकर्षण में बल ही होता है जो हाइड्रोजन एवं ऋणविद्युती परमाणु के मध्य होता है। इस आकर्षण बल या H-बन्ध की तीव्रता निम्न कारकों पर निर्भर करती है—


(1) विद्युत्-ऋणात्मकता (Electronegativity)—चूंकि H-बन्ध बनने का कारण ही विद्युत् ऋणात्मकता है अतः कोई परमाणु जितना अधिक ऋणविद्युती होगा, वह उतना ही मजबूत और उतनी ही सरलता से हाइड्रोजन बन्ध बनायेगा। उदाहरण के लिए, N से F तक जाने में विद्युत् ऋणात्मकता का मान बढ़ता जाता है अतः H-बन्ध बनाने की प्रवृत्ति व सामर्थ्य भी इस दिशा में बढ़ेगी अर्थात् N – H < O—H <F-H यदि O—H व S—H की तुलना करें तो ऑक्सीजन चूंकि सल्फर से अधिक ऋणविद्युती है, अतः H-बन्ध का सामर्थ्य क्रम O-H> S-H होगा। इसी प्रकार फ्लुओरीन व क्लोरीन में फ्लुओरीन अधिक ऋणविद्युती तत्व है अतः H-बन्ध की सामर्थ्य निम्न क्रम में होगी: F—H > CI— H। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि फ्लुओरीन, चूंकि अधिकतम ऋणविद्युती तत्व है, इसलिए यह प्रबलतम H-बन्ध बनाता है।


(2) परमाण्वीय त्रिज्या (Atomic radius)— ऋणविद्युती परमाणु का आकार बढ़ने से बन्ध दूरी का मान बढ़ता है और बन्ध दूरी के बढ़ने से बन्ध की सामर्थ्य घटती है। अतः ऋणविद्युती परमाणु की त्रिज्या जितनी अधिक होगी उसके द्वारा बना हुआ हाइड्रोजन बन्ध उतना ही दुर्बल होगा। उदाहरणार्थ, नाइट्रोजन व क्लोरीन की विद्युत् ऋणता का मान लगभग समान होता है, लेकिन क्लोरीन का आकार N की तुलना में बड़ा है अतः N-----H बन्ध की प्रबलता CI-----H की तुलना में अधिक होती है।


(3) अन्य बन्धी परमाणुओं की प्रकृति (Nature of other bonded atoms) C-H बन्ध सामान्य स्थिति में H-बन्ध नहीं बना सकता है, लेकिन यदि C के साथ प्रबल ऋणविद्युती तत्व जुड़े हुए हों तो C—H बन्ध के साथ भी H-बन्ध बन जाता है। उदाहरणार्थ, CHCl3 में तीन क्लोरीन परमाणु इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं जिससे CHCl3, का H परमाणु अम्लीय हो जाता है और क्लोरीन परमाणुओं के साथ H-बन्ध बना लेता है।इसके विपरीत किसी विलयन में विलेय के कण सान्द्रता बढ़ने पर पास-पास आ जाते हैं जिससे उनके मध्य का H-बन्ध प्रबल हो जाता है।




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